शौर्य दिवस पर कविता

६ दिसम्बर,किसी भी वर्ष का एक सामान्य दिन,भारतीय राजनीति का का एक खास दिन,६-दिसम्बर -१९९२ ,बाबरी मस्जिद ढहाई गई, दो दिलों के बीच नफ़रत की दीवार उठाई गई.इस दिन को कोई शौर्य दिवस के रूप में मनायेगा,कोई पुरुषार्थ दिवस के रूप में ,कोई धिक्कार दिवस के रूप में मनाएगा,कोई इसे इन्सानियत शर्मसार दिवस के रूप में मनायेगा.लाश गिन-गिन संसद की सीढ़िया चढ़ते लोग..लिब्राहम रिपोर्ट में इल्जाम सब पर ,मुजरिम कोई नही...... जले पर नमक यह कि इस घटना पर एक श्वेत-पत्र लाने की बात हुई थी....शायद .उन्हे मालूम नहीं....इतिहास के काले पन्नों से श्वेत-पत्र नहीं लिखा जाता.. अयोध्या बाबरी मस्जिद प्रकरण पर हुए दंगे पर उत्पन्न एक सहज आक्रोश.....उस समय लिखी गई एक सहज कविता....] एक कविता :श्वेत-पत्र पर खून की छींटे.. श्वेतपत्र पर खून की छींटे मिट न सकेंगे चाहे जितना तथ्य जुटा लो टिक न सकेंगे ...